अपराध

 


एक वन था, बहुत बड़ा. उसमें कई सारे पेड़ थे, बड़े विशाल. उस वन में पशु पक्षी रहते थे, बहुत सारे. 

एक दिन वन के समीप एक बड़े गाँव से कुछ लोग आए, वन देखा. उनके पास कुछ यंत्र थे. कुछ नाप रहे थे, कुछ पेड़ गिन रहे थे. पशु प्राणी छिप कर उनकी बातें सुन रहे थे. वे समझ गए कि लोग वन के कुछ पेड़ को काट कर उन्हें दूसरे गाँव से जुड़ने के लिए रास्ता बनाना चाहते थे. यह विचार उनके मन में एक शहरी उद्योगपति ने डाला था ... कि उनका समय बचेगा और गाँव दूसरे गाँव से अच्छे से जुड़ कर प्रगति करेगा. प्राणी दुःखी हो गए. कहाँ जाएंगे, कैसे खुद को बचाएंगे. सब विचार विमर्श कर रहे थे. और बातूनी कछुई ने कहा "ठीक है सब चले जाना. मगर जहाँ जाओगे वहाँ से भी भगा दिए गए तो?"

"कछुई जी, आपको तो बस बातें करनी है. समझना तो है नहीं कुछ. हम भागे नहीं तो मार दिए जायेंगे."

"कायरता भी मृत्यु समान ही है."

"मानवों के पास इतने बड़े औज़ार है."

कछुई मुस्कुराते हुए बोली "सबसे बड़ा शस्त्र, बड़ा औज़ार दिमाग़ है." और ऐसा कह कर कछुई वहाँ से चल दी. उसे बहुतों से बहुत सारी बातें तो नहीं करनी थी पर कहीं जाना था. 

दूसरे दिन कछुई उस गाँव के मंदिर में पहुँची जहाँ से वे लोग आए थे. कल रात की निकली, आज पहुँची। उस गाँव के मुख्य मंदिर में गई. गाँव के मुखिया, अन्य लोग और पुजारी उपस्थित थे. कछुई को देख कर हैरान हुए. पानी दिया. कछुई ने आभार व्यक्त किया फिर बड़े आश्चर्य से मंदिर में देखने लगी. 

पंडित से पूछा "यह देवी देवताओं के साथ प्राणी?"

"हाँ, उनके वाहन हैं. यह माँ दुर्गा है. इनका वाहन शेर है."

"अरे, यह तो वन में रहता है. और यह?"

"यह महादेव हैं. इनका वाहन बैल है, पर गले में सर्प की माला है."

"अरे, जंगली बैल और सर्प भी वन में रहते हैं. और यह?"

"यह गणेश जी हैं. इनका वाहन मूषक है."

"अरे, यह तो वन में रहता है. और यह?"

"यह विश्वकर्मा हैं. इनका वाहन हाथी है."

"अरे, यह तो वन में रहता है. और यह?"

"यह विष्णु जी हैं. इनका वाहन गरुड़ है."

"अरे, यह तो वन में रहता है. और यह?"

"यह हमारे प्रभु श्री राम अपनी पत्नी सीता मैया और भ्राता लक्ष्मण के साथ हैं. और उनको प्रणाम करने वाले वीर बजरंगबली है."

"बजरंगबली जी मानव है?"

"नहीं, वे वानर है."

"वानर! यह तो वन में रहते है."

कछुई ने पंडित और मुखिया की तरफ मुड़ी और भोलेपन से कहा "मतलब वन काटने से आप जो जो प्राणी बेघर करेंगे उन्हें आप अपने देवी-देवताओं संग पूजते हैं, तो इनको भी मंदिर से निकाल देंगे?"

कोई कुछ उत्तर न दे पाया. जैसे प्रभु मूर्ति सो भक्त. कछुई सिर हिलाते हुए मंदिर के बाहर गई. मुखिया भागते हुए उसके पीछे गया. उसके पैर छुए और बोला "हमें क्षमा करें. हम घोर अपराध करने जा रहे थे."

कछुई मुस्कुराई और बोली "कोई बात नहीं. वैसे आपका नाम क्या है?"

मुखिया ज़ोर से हंसा और कछुई को प्रणाम करते हुए बोला "मेरा नाम सागर है."




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