कौआ और कोयल






एक वन था. बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे. एक कौआ भी था, कोयल भी थी. कोयल अपने मधुर कूक से सबका मन लुभाती. कौए की कर्कश से सब उसको भगा देते. कौआ कोयल की लोकप्रियता से परेशान था. एक दिन उसके दिमाग में उपाय आया. उसने भोली कोयल से कहा "तेरे गीत सुनकर सब ऊबने लगे हैं. तुझे पत्थर मार भगा देंगे!"

कोयल घबरा गई. उसने कौवे से हल पूछा. कौवे ने कहा "आजकल मैं जब मानवों के घर की छत पर जाता हूँ तो वे अक्सर ऐसे गीत सुनते हैं जिनमें गालियाँ होती हैं. तुम भी गालियाँ देने लगो और फिर देखो तुम्हें सुननेवाले तुम्हारे मोहक बन जाएंगे".

"मगर मुझे तो गालियाँ नहीं आती."

"मैं हूँ ना! मैं सिखा देता हूँ" और कौवे ने उसे गालियाँ सीखा दी.

अगले दिन मधुकंठील कोयल गालियों के साथ गाने सुनाने लगी. सब को आश्चर्य हुआ और उसके विचित्र गानों को सुनने कई इकट्ठे हुए.

कौवा यह देख हैरान हुआ कि गालियाँ देने पर भी कोई कोयल को पत्थर से मार नहीं रहा. बातूनी कछुई ने कौवे से पूछा "क्या हुआ भाई?"

कौवा बोला "मैंने कोयल को गालियाँ सिखाई कि वह यह सीख कर गायेगी तो सब उसे भगा देंगे. मगर इसके विपरीत हो रहा …"

कछुई मुस्कुराई और वहाँ से जाने लगी क्योंकि उसे बहुतों से बहुत बातें जो करनी थी. जाते जाते उसने कहा

"जाए तो जाए, मति से जाए, प्रकृति से न जाए".


शीतल सोनी

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