साँप और मैना



एक वन था. बड़ा सुंदर. बहुत पेड़ों में एक पेड़ था. बड़ा विशाल. मगर उस विशाल पेड़ पर किसी भी पक्षी का घोंसला न था. क्यों? क्योंकि वहाँ एक अजगर रहता था.

एक दिन एक मैना उड़ती हुई उस पेड़ पर आई, इस बात से अनजान कि वहाँ कौन रहता है. उसे इस पेड़ की छांव और शांति अच्छी लगी. घोंसला बनाने के लिए आदर्श. उसके बच्चे सुरक्षित रहेंगे. वह घोंसला बनाने लगी. और आ गया अजगर.

"बड़ा ही प्यारा घोंसला बनाया है!"

मैना एकदम से डर गई. रोते हुए बोली "मुझे कुछ मत कीजिए. मैं अनजाने में यहाँ चली आई. जानती कि आप यहाँ हैं तो …"

"हा हा हा! इसमें डर क्यों रही हो? शौक से रहो. मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगा. और मेरे डर से यहाँ कोई नहीं आएगा. तुम सुरक्षित हो."

मैना मुस्कुराई और बोली "आप कितने दयालु हो. सब बेवजह आपसे डरते हैं."

अजगर मुस्कुराया और बोला "परंतु तुम्हें मेरी थोड़ी मदद करनी होगी. यहाँ कोई नहीं आता. तुम उड़ सकती हो. तुम उड़ कर मुझे बताया करना कि जानवर कहाँ कहाँ है. मुझे शिकार में आसानी रहेगी."

मैना खुशी खुशी मान गई. और कुछ दिन बाद उसने अंडे दिए. अंडों से उसके बच्चे निकले. अब वह अजगर के खाने के साथ अपना भी खाना ढूंढने निकलती.

एक दिन बातूनी कछुई ने उसे देखा और पुकारा. वह कछुई के पास गई और बोली "कैसे हैं आप?" कछुई बोली "मैं तो ठीक हूँ. बस पीठ में थोड़ा दर्द है. यह बताओ बच्चे कैसे हैं?"

मैना बोली "बच्चें मज़े में हैं. मेरी राह देख रहे होंगे. अजगर उनका खयाल रख रहा."

"अजगर?"

"जी. उसी की शरण में रहती हूँ. उसके पेड़ पर ही तो घोंसला बनाया है. वह मेरा मित्र है."

कछुई ने उसे कुछ कहा और वहाँ से चल दी. उसे बहुतों से बहुत सारी बातें जो करनी थी.

बारिश होने लगी. मैना जल्दी जल्दी अन्न के दाने इकट्ठे करने लगी. बच्चे भूखे होंगे बेचारे. साथ में देखती जा रही थी कि अजगर के लिए कोई खाने लायक जानवर मिले. मगर सारे जानवर बारिश के कारण छिपे बैठे थे. वह घर की तरफ उड़ने लगी. और जो देखा तो अवाक रह गई. अजगर मैना के बच्चे निगल रहा था. आँखों के सामने यह दृश्य और कानों में बातूनी कछुई की बात गूंज रही थी "वह तुम्हारा मित्र केवल तब तक है जब तक उसे भूख लगने पर खाना नहीं मिलता, जब तक उसका स्वार्थ है."



शीतल सोनी

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