कचरे की पहचान

 




"कितनी टेढ़ी है पूँछ तुम्हारी!" नेवले ने कुत्ते को देखते ही कहा. 

"हाँ तो?" यह कह कर कुत्ता आगे चला गया. नेवले ने मुँह बिगाड़ा और आगे बढ़ा. उसे कीचड़ में खेलता सुअर मिला. "कितने गन्दे हो! कीचड़ से क्यों खेल रहे?" सुअर बोला "गंदा हूँ, गंदगी फैला तो नहीं रहा. तू अपने काम से काम रख!"


नेवला भी वहाँ से चला और रास्ते में गधा मिला. "तुझे अकल तो है नहीं, बस यूँही मनुष्य तुझ पर बोझ डाल कर काम करवाते रहते हैं". गधा मुस्कुराया और बोला "अकल नहीं मगर किसी के तो काम आता हूँ. निकम्मा तो नहीं!" इस बार नेवला गुस्से में चल दिया. 


थोड़ा ही दूर गया कि उसे बातूनी कछुई मिली. "कितनी धीरे धीरे चलती हो!आलसी!" कछुई मुस्कुराई और बोली "यह मेरी प्रकृति है. वैसे तुम इतना कचरा क्यों इकट्ठा कर रहे हो?"


"कचरा? कैसा कचरा?" नेवले ने अपनी हथेली देखते हुए पूछा. 


"यह जो तुम सब के दोष निकालते रहते हो वह कचरा ही तो है. उन सब को तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता … तुम्हारी ही जिह्वा गंदी हो जाती है. कचरा उठाना छोड़ दो."


"नहीं. जब तक सब को कचरा दिखाऊंगा नहीं तब तक कोई उसे साफ नहीं करेगा". 

"ऐसा है? फिर एक काम करो. कल सवेरे तालाब पर पहुँच जाना. वहाँ पानी में तुम्हें बहुत सारा कचरा देखने मिलेगा". 

"तालाब में? ठीक है. कल प्रातः जा कर देखता हूँ किसने कचरा रखा है वहाँ." कछुई वहाँ से चल दी … उसे बहुतों से बहुत बातें जो करनी थी. 


अगले दिन नेवला तालाब पर गया. अन्य कोई प्राणी नहीं था वहाँ. तालाब में देखा. उसे अपने प्रतिबिंब ही दिखाई दिया. अन्य तो कुछ दिखा नहीं. सिर खुजलाते हुए बोला "यह कछुई पागल हो गई है. तालाब में तो कोई कचरा नहीं. सिर्फ मेरा प्रतिबिंब है."


~ शीतल सोनी


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